Saturday 25 January 2014

वो शाम मुसलसल है..


पेशानी पर पड़ी वो लकीरें,
रुखसारों पर आ गिरी हैं..
चेहरे पर ढलकी हुई ज़ुल्फ़ें अब,
कानों के पीछे ही गुँथी रहती हैं..
वो पलकें जो झुकी रहती थीं,
अक्सर बंद सी रहती हैं..
लबों पर बिखरी हुई मुस्कुराहट,
लबों में ही उलझी रहती है..

कितने ही दफ़े,
आईने को कहते सुना है के,
"एक वक़्फ़ा बीत गया है",
मगर यकीन नहीं आता..

कि उस लम्स की ख़ुशबू गयी नहीं है,
आज भी महकती है साँसों में..
वो शाम आज भी ढली नहीं है,
मुसलसल है एहसासों में..

#25th January
Bangalore

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