चलते-चलते,
किस जानिब निकल आये !
न जाने कब,
ज़मीं से रेत पर उतर आये !
वो निशाँ जो तुमने छोड़े थे,
संग उनके चलते,
फ़क़त तूफाँ ही नज़र आये !
तूफाँ गुजरने थे,
गुज़र गए मगर,
निशाँ पाँव के रेत में खो गए !
कारवाँ तो गुजरने थे,
वो गुज़र गए और,
हम खानाबदोश हो गए !
#15th November
Lakhimpur-Kheri