Sunday 16 November 2014

खानाबदोश


चलते-चलते, 
किस जानिब निकल आये !
न जाने कब,
ज़मीं से रेत पर उतर आये !
वो निशाँ जो तुमने छोड़े थे,
संग उनके चलते,
फ़क़त तूफाँ ही नज़र आये !

तूफाँ गुजरने थे, 
गुज़र गए मगर, 
निशाँ पाँव के रेत में खो गए !
कारवाँ तो गुजरने थे,
वो गुज़र गए और,
हम खानाबदोश हो गए !

#15th November
Lakhimpur-Kheri


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