ख़ानाबदोश
अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Friday 2 October 2015
तसव्वुर
यही ज़मीं है, यही आसमाँ है,
दोज़ख यहीं है, जन्नत यहाँ है..
यही इश्क़ है, यही गिला है,
खामोशी यहीं है, यहीं सदा है..
यही वक़्त है, यही वेकराँ है,
अधूरा यहीं है, तक़मील यहाँ है..
जो कर सको हासिल इसे,
तो यही मुक़म्मल जहाँ है..
#Lakhimpur-Kheri
30th Sept'15
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)