Tuesday 26 November 2013

नज़्म



याद है, कैसे उस रोज़,
तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था,
"काट दो आज की शाम मेरे पहलू में",
कैसे ज़िद करी थी तुमने,
अपनी तारीफ़ सुनने की,
और कैसे मज़ाक बनाया था मैंने तुम्हारा.. 

आज किताब में तुम्हारा एक फ़ोटो मिला है,
फिर एक शायर जागा है,
फिर से एक नज़्म याद आयी है..


#17th November
Bangalore


Saturday 16 November 2013

इंतज़ार


अनबूझे सवाल,
अनकहे जवाब,
रही खामोश ज़ुबान...


कागज़ पर स्याही के छींटे,
दीवार की दरारें,
दरीचें...


किताब के बीच रखा गुलाब,
अश्कों का वो आखरी सैलाब...


मेरे तरफ की करवट,
चादर पर पड़ी सलवट..


हैं बेतरतीब सब उसी तरह,
इंतज़ार है इन्हें आज भी तेरे एहसास का...

Wednesday 13 November 2013

धुँधलका



कहते हैं यादों की सलवटें मिटाने के लिए वक़्त की लांड्री की ज़रूरत होती है..अक्सर तो ये सलवटें मिट जाती हैं पर कभी-कभी अपने पीछे कुछ निशाँ भी छोड़ जाती हैं..हमारी ज़िन्दगी में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें न तो हम भूलना चाहते हैं, और न ही याद रखना चाहते हैं..भूलना इसलिए नहीं चाहते क्यूंकि वो बातें, वो यादें हमारे गुज़रे हुए खूबसूरत पलों की हैं, और याद इसलिए नहीं रखना चाहते क्यूंकि हम जानते हैं की वो बातें अब फिर कभी नहीं होंगी..मगर यहाँ सवाल शायद ये है की क्या वो बातें, जिनकी गूँज आज तक हमारे ज़हन में है, जिनके निशाँ आज भी जिंदा हैं, क्या हम उन्हें इतनी आसानी से भुला पायेंगे, और क्या हम उन खूबसूरत पलों को भूल कर खुश रह पाएंगे..शायद इस सवाल का जवाब हमारे अन्दर ही है, बस ज़रूरत है खुद से पूछने की..

                                                     पीले हो चले पन्ने अब,
                                                     स्याही भी कुछ धुंधला सी गयी है,
                                                     देखो यादों के खोशों पर, धूल कितनी जम गयी है,
                                                     गरदूले सफहों पर, परत-दर-परत कितनी पड़ गयी हैं..
                                                     
                                                     आओ, आकर झाड़ दो इक बार इन्हें,
                                                     मिल जाये क्या पता वो हँसी जो गुम गयी है..
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