इक ख्वाब पलता है,
के सफर इक ऐसा हो,
ज़मीं से उफ़क़ तक,
रौशन हर नज़ारा हो..
इक जानिब वादी हो,
कुछ दूर किनारा हो..
ज़मी पर उतरता अब्र हो,
फलक पर चमकता सितारा हो..
इस साकित ज़िन्दगी में,
रवानगी का सहारा हो..
मंज़िल दूर चाहे जितनी,
मील का पत्त्थर हमारा हो..
बस इक ख्वाब पलता है,
यूँ सफर हमारा हो..
#Lakhimpur-Kheri
14th Dec'14