Saturday 27 June 2015

मुसाफ़िर


इक ख्वाब पलता है,
के सफर इक ऐसा हो,
ज़मीं से उफ़क़ तक,
रौशन हर नज़ारा हो..
इक जानिब वादी हो,
कुछ दूर किनारा हो..
ज़मी पर उतरता अब्र हो,
फलक पर चमकता सितारा हो..
इस साकित ज़िन्दगी में,
रवानगी का सहारा हो..
मंज़िल दूर चाहे जितनी,
मील का पत्त्थर हमारा हो..
बस इक ख्वाब पलता है,
यूँ सफर हमारा हो..

#Lakhimpur-Kheri
14th Dec'14


Monday 22 June 2015

वो हमसफ़र था


बहुत बचपन इन शाखों पे झूला था,
जवानी भी इसकी ओट में गुज़री थी,
और कितना तज़ुर्बा इस छाँव में बैठा था..

सारे मरासिम काट कर,
चार चक्कों पे सवार हो कर,
जा रहा है इक उम्र ले कर..

कहते हैं शहर तक जाएगी ये सड़क..



#Bangalore
19th June


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