अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Sunday 16 November 2014
Friday 31 October 2014
हमसफ़र
आधे-अधूरे,
ज़िन्गदी ने हज़ार मिसरे उछाले मेरी जानिब,
तुमने तरानों में उनको तब्दील कर दिया..
न कुछ पूछा, न कुछ कहा,
फ़क़त समझा,
मुझको, और मेरे जहाँ को..
अब इल्म हुआ,
कि तन्हा रहना इतना भी बेज़ार नहीं,
अदावतें कुछ कम होती हैं,
रंजिशें भी नहीं होती हैं..
फ़क़त हम होते हैं,
हमारी तसव्वुर, हमारी सदा होती है..
#30th October
Lakhimpur-Kheri
Saturday 20 September 2014
अक्स
आज कितने वक़्त के बाद,
उससे मुलाक़ात हुई..
शक्ल-ओ-सूरत, सोज़-ओ-आवाज़,
सब वही..
मगर, फिर भी कुछ फ़र्क़ लगता था..
मैं ग़फ़लत में था,
के कुछ बदल गया है उसके अंदर !
या मेरा नजरिया बदल गया है ?
फिर वक़्त गुज़रा,
फिर ग़फ़लत हुई,
फिर कहीं ये इल्म हुआ !
वक़्त क्यूँ करूँ जाया उस पर,
हर रोज़ बदलती सीरत है..
रंग मौसम के संग बदलना,
शायद यही उसकी फितरत है..
आज कितने वक़्त के बाद,
उससे मुलाक़ात हुई..
#19th September
Hyderabad
Monday 8 September 2014
अश्क़ तेरे झरे..
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है,
पतझड़ में भी लगता, के लगता बारिश का मौसम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
चाहे तू मुझे, बस यही दुआ हर दम है,
मोहब्बत तुझसे करूँ कितनी, के इबादत भी लगती कम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
तुझसे बिछड़ के मिली, तो क्या ज़िन्दगी मिली,
जाता नहीं, के ये कैसे ग़म है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
समझा नहीं, के कोई समझाए मुझे,
हमसे तुम हो, के तुमसे हम हैं..
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
पतझड़ में भी लगता, के लगता बारिश का मौसम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
चाहे तू मुझे, बस यही दुआ हर दम है,
मोहब्बत तुझसे करूँ कितनी, के इबादत भी लगती कम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
तुझसे बिछड़ के मिली, तो क्या ज़िन्दगी मिली,
जाता नहीं, के ये कैसे ग़म है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
समझा नहीं, के कोई समझाए मुझे,
हमसे तुम हो, के तुमसे हम हैं..
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
#1st September
Lakhimpur-Kheri
Monday 25 August 2014
नमी..
सारे जहाँ की मसरूफियत के चंगुल से छूटे तो शूऊर खुद ही दौड़ने लग गया, मरता क्या ना करता, आना ही पड़ा फिर से...अकेले बैठ कर चाय की चुस्कियां लेते हुए, बीते दिनों को याद करने की बात ही अलग होती है...और फिर हम भी खुद को तुर्रम खां समझते थे, कि अजि क्या मजाल जो कभी जज्॒बाती हो जाएँ किसी बात पर...पर शायद वक़्त ने सब बदल दिया, हमें भी और खुद को भी..
तब चाय के दौर भी खूब चला करते थे,
उधारी के मौसम में, जेब खाली,
मगर पेट भरा रहा करते थे..
किसे फ़िक्र रहती कल के पर्चे की,
बस खातूनों के चर्चे चला करते थे..
ये तेरी भाभी-वो मेरी कह कर,
बस रिश्ते बना करते थे..
वक़्त वो ठहर जाये वहीँ,
हर रोज़ दुआ किया करते थे..
पर वक़्त का तक़ाज़ा कुछ और था और तकदीर को मंज़ूर कुछ और ही..तो खैर बस अपने यारों को याद करते-करते आज आँखें नम हो ही गयीं..मगर एक उम्मीद के साथ..
फिर से यारों की वो महफ़िल होगी,
फिर से ज़िन्दगी ज़िंदादिल होगी,
यही सोचता,
गिरता-संभालता,
वक़्त से लड़ता,
चला जा रहा हूँ,
यही सोचता,
फिर से यारों की वो महफ़िल होगी...
वो मेरे यार भी इंतज़ार करते होंगे,
मेरी तरह वो भी बेचैन रहते होंगे,
ख्वाहिश मिलने की दिल में दबाये,
वो भी बेकरार रहते होंगे,
सोचते होंगे,
कभी तो ज़रूर जियेंगे उन लम्हों को,
और खुद से कहते होंगे,
फिर से शाम जवाँ होगी,
फिर से यारों की वो महफ़िल होगी...
#25th August
Lakhimpur-Kheri
Saturday 1 February 2014
रोटी, कपड़ा और मकान..
मोहल्ले की परले वाली गली में,
बड़ी रौनक रहती है..
घुसते ही गली में देखो,
हलवाई की दुकान है,
जिसकी खुशबू भर से ही,
ज़ुबाँ पर स्वाद आ जाता है..
आगे कुछ दूर,
इक फेरीवाले को लड़के-लड़कियां घेरे खड़े हैं,
बुढ़िया के बाल बेचता है शायद, गुलाबी से..
बगल में ही,
लाला चिल्ला रहा है,
आटे का भाव जो बढ़ गया है..
वहीँ लाला की दुकान,
जिसकी पिछली दीवार से टेक लगाये बैठी गुड्डी ने,
धीरे-धीरे हर निवाला,
आंसू में लपेट कर निगल लिया है..
और मुन्तज़िर नहीं रह सकी वो,
दो रोज़ जो गुज़र गए हैं,
अम्मी को नमक लाते-लाते..
#28th January
Bangalore
Saturday 25 January 2014
वो शाम मुसलसल है..
पेशानी पर पड़ी वो लकीरें,
वो पलकें जो झुकी रहती थीं,
अक्सर बंद सी रहती हैं..
लबों पर बिखरी हुई मुस्कुराहट,
लबों में ही उलझी रहती है..
कितने ही दफ़े,
आईने को कहते सुना है के,
आईने को कहते सुना है के,
"एक वक़्फ़ा बीत गया है",
मगर यकीन नहीं आता..
कि उस लम्स की ख़ुशबू गयी नहीं है,
आज भी महकती है साँसों में..
वो शाम आज भी ढली नहीं है,
मुसलसल है एहसासों में..
#25th January
Bangalore
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