Friday 30 January 2015

यूँ ही कभी..


अक्सर मैं,
उस कुतबे पर फूल रख आता हूँ,
कभी वक़्त भी गुज़ारता हूँ,
इंतज़ार करता हूँ,
तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ..
फिर, खुद में लौट जाता हूँ,
इक इंतज़ार को समेटे हुए..

जानता हूँ, इक अरसा गुज़र गया है,
कुछ कहे हुए, कुछ सुने हुए..

मगर, कभी आना,
उस मरासिम के मक़बरे की जानिब,
बैठेंगे, बातें करेंगे..


#30th January
Lakhimpur-Kheri

Wednesday 14 January 2015

अंज़ाम



ज़हन में भटकी बहुत थी वो,
बार गिरी कई थी,
लड़ी भी बहुत थी वो,
फिर छटपटाई भी देर तक थी..

अल्फ़ाज़-दर-अल्फ़ाज़ रदीफ़ खोते गए,
आहिस्ता-आहिस्ता काफ़िये तहलील होते गए,
ख़ामोशी-ऐ-तवील के फिर हाशिये खिंच गये..

और एक नज़्म यूँ घुट कर बेसुध हो गयी..


#13th January
Lakhimpur-Keri


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