Sunday 14 August 2016

इंतजार


कल, रात बड़ी उदास थी..मैंने पूछा तो कहने लगी,
"क्या करोगे जान कर ? और क्या फ़ायदा बता कर ? न मैं बदल सकती हूँ और, बाक़ी कोई बदलेगा नहीं.."

मुझे चुप देख कर बोली,
"जानते हो, हर कोई मेरा इंतज़ार करता है..मगर इसलिए नहीं कि वो मुझे चाहते हैं, बल्कि इसलिए की दिन ढले और वो जिसे चाहते हैं उसके क़रीब पहुँच सकें..जो साथ हैं वो एक-दूसरे का लम्स चाहते हैं, जो दूर हैं वो बातों में मसरूफ़ हो जाते हैं..सब मेरा इंतज़ार करते हैं, किसी और का साथ पाने के लिए..मगर इस इंतज़ार में भी मैं इनका साथ देती हूँ..अब इस चाँद को ही देखो, कितना क़रीब है मेरे, मगर फिर भी इसे रोक कर नहीं रख पाती मैं, निकल जाता है कभी तारों संग-कभी बादलों के संग, और कभी तो एक दम गायब हो जाता है.."

"तन्हा महसूस नहीं होता कभी ?"
मैंने पूछा

"होता है कभी-कभी, जैसे आज..मगर मैंने सबके ग़म को अपना ग़म और उनकी ख़ुशी को ही अपनी ख़ुशी बना लिया है..वो जैसे दो प्यार करने वालों में होता है न, वैसे..".."या फिर कभी-कभी तुम जैसा खोया हुआ कोई आ कर बैठ जाता है पहलू में...", रात ने मुस्कुरा कर कहा

"सच कहूँ, मैं भी किसी का इंतज़ार कर रहा था"

"जानती हूँ !"

"मगर मैं और जानना चाहता हूँ, और सुनना...", तभी दूर कहीं से चिड़ियों की चहचहाट आयी और आया आहिस्ता-आहिस्ता रोशनी बिखेरता शम्स..फिर किसी ने कुछ नहीं कहा, हमारी खामोशियों ने अलविदा कहा और बस एक-दूसरे पहलू में बैठे हुए, हम वक़्त को, इंतज़ार को, बहते देखते रहे..


#Ghaziabad
08-08-2016

Sunday 10 January 2016

पुलिन्दे




कोने में, कुछ इक पुलिन्दे पड़े थे ख़तों के,
और साथ पड़ी थीं कुछ यादें, कुछ एहसास,
वहीँ बगल में इक खिड़की खुलती थी,
जिसके सामने मेरी मेज़ पड़ी थी,
हर रोज़ उस खिड़की से मैं,
तुम्हे आते देखा करता था,
तुम हल्की मुस्कराहट पहने,
नज़रें ज़मीं पर गड़ाए आती थीं,
और शायद ये आँखों का धोखा था,
या तुम इक पल को नज़र उठाती थीं,
फिर मेरी नज़रों से ओझल हो जाती थीं..
मैं फिर शाम के इंतज़ार में,
तुम्हारे नाम ख़त लिखा करता था,
लिख कर उसी पुलिंदे में रख दिया करता था..

शाम को फिर मैं,
उस खिड़की की चौखट पर,
सर रख कर बैठ जाया करता था,
और आहिस्ता-आहिस्ता तुम फिर,
मेरी नज़रों से ओझल हो जाती थीं..

मैं आज भी उस मेज़ पर अक्सर,
कुछ टुकड़े सफ़होँ के ले कर बैठ जाता हूँ,
ये सोच कर, के शायद किसी रोज़ तुम,
फिर वही मुस्कराहट पहने,
नज़रें ज़मीं पर गड़ाए,
उस पगडंडी से गुज़रोगी,
और मैं शाम के इंतज़ार में,
तुम्हे फिर से ख़त लिखूँगा..


#Lakhimpur-Kheri
9th January'16

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