आजकल, बड़ी मशक्कत लगती है,
हर्फ़ तलाशने में,
तुम्हें तो एहसास होगा?
देर रात गुफ्तगू की आदत जो छूट गयी है..
मुझे याद है,
तब पलकें कुछ कम भारी हुआ करती थीं,
शायद इसीलिए आजकल,
रातें भी तवील लगने लगी हैं..
घड़ी के कांटे भी जो नेज़े से मालूम पड़ते थे,
कैसे तेजी से सेहर की ओर उड़ते थे,
वक़्त भी शायद इसीलिए,
दफ्फतन ज्यादा लगने लगा है..
मगर तुम फ़िक्र मत करना,
मैंने घड़ी पहनना छोड़ दिया है,
आजकल जल्दी सोने लगा हूँ..
#19th December
Bangalore
मगर तुम फ़िक्र मत करना,
ReplyDeleteमैंने घड़ी पहनना छोड़ दिया है,
आजकल जल्दी सोने लगा हूँ..
आदतें हमेशा से किसी की शय तले पनपती हैं और एक वक़्त आता है जब बड़ा मुश्किल हो जाता है जब उसकी गैरमौजूदगी में आदतें संभलती नहीं हमसे.. :)
सही कहा केतन भैया..ज़िन्दगी भी एक आदत ही है..इसे सम्भालना बड़ा मुश्किल लगने लगता है !!
Deleteghari pehen le bhai.... main fikr karta hu teri.....
ReplyDeletehaha..wo pata hai mujhe bade bhai,,phir bhi dhanyawad :)
DeleteUrdu this time...
ReplyDeleteMust say... Awesome
Bahut shukriya Nimit Sir :)
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