ख़ानाबदोश
अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Thursday 5 March 2015
दंगा
सारा दिन शम्शीर टकराईं थीं,
गली-गली मकाँ जलाये थे..
आग कुछ ने लगायी थी,
और लहू सब बहाये थे..
उस रोज़,
क़त्ल इन्सां कहाँ हुए थे,
किसी ने टोपियां उछाली थीं,
किसी ने तिलक मिटाये थे..
#6th Feb 2015
Lakhimpur-Kheri
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