ख़ानाबदोश
अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Monday 22 June 2015
वो हमसफ़र था
बहुत बचपन इन शाखों पे झूला था,
जवानी भी इसकी ओट में गुज़री थी,
और कितना तज़ुर्बा इस छाँव में बैठा था..
सारे मरासिम काट कर,
चार चक्कों पे सवार हो कर,
जा रहा है इक उम्र ले कर..
कहते हैं शहर तक जाएगी ये सड़क..
#Bangalore
19th June
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