अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है,
पतझड़ में भी लगता, के लगता बारिश का मौसम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
चाहे तू मुझे, बस यही दुआ हर दम है,
मोहब्बत तुझसे करूँ कितनी, के इबादत भी लगती कम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
तुझसे बिछड़ के मिली, तो क्या ज़िन्दगी मिली,
जाता नहीं, के ये कैसे ग़म है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
समझा नहीं, के कोई समझाए मुझे,
हमसे तुम हो, के तुमसे हम हैं..
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
पतझड़ में भी लगता, के लगता बारिश का मौसम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
चाहे तू मुझे, बस यही दुआ हर दम है,
मोहब्बत तुझसे करूँ कितनी, के इबादत भी लगती कम है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
तुझसे बिछड़ के मिली, तो क्या ज़िन्दगी मिली,
जाता नहीं, के ये कैसे ग़म है…
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
समझा नहीं, के कोई समझाए मुझे,
हमसे तुम हो, के तुमसे हम हैं..
अश्क़ तेरे झरे, के आँख मेरी नम है...
#1st September
Lakhimpur-Kheri
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