ख़ानाबदोश
अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Saturday, 23 May 2015
जुलाहा
कभी लाल सुर्ख, कभी गाढ़ा नीला,
सफ़ेद कभी, कभी काला,
कितने ही रंगों से वो घिरा रहता है..
कभी आईने के सामने से गुज़रो तो,
क़रीब से दिखता है..
कि कोशिशों के धागे चुन कर वो,
तक़दीर बुना करता है..
#Bangalore
21st May'15
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