अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Tuesday, 26 November 2013
Saturday, 16 November 2013
Wednesday, 13 November 2013
धुँधलका

पीले हो चले पन्ने अब,
स्याही भी कुछ धुंधला सी गयी है,
देखो यादों के खोशों पर, धूल कितनी जम गयी है,
गरदूले सफहों पर, परत-दर-परत कितनी पड़ गयी हैं..
आओ, आकर झाड़ दो इक बार इन्हें,
मिल जाये क्या पता वो हँसी जो गुम गयी है..
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