Saturday 16 November 2013

इंतज़ार


अनबूझे सवाल,
अनकहे जवाब,
रही खामोश ज़ुबान...


कागज़ पर स्याही के छींटे,
दीवार की दरारें,
दरीचें...


किताब के बीच रखा गुलाब,
अश्कों का वो आखरी सैलाब...


मेरे तरफ की करवट,
चादर पर पड़ी सलवट..


हैं बेतरतीब सब उसी तरह,
इंतज़ार है इन्हें आज भी तेरे एहसास का...

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