Wednesday 13 November 2013

धुँधलका



कहते हैं यादों की सलवटें मिटाने के लिए वक़्त की लांड्री की ज़रूरत होती है..अक्सर तो ये सलवटें मिट जाती हैं पर कभी-कभी अपने पीछे कुछ निशाँ भी छोड़ जाती हैं..हमारी ज़िन्दगी में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें न तो हम भूलना चाहते हैं, और न ही याद रखना चाहते हैं..भूलना इसलिए नहीं चाहते क्यूंकि वो बातें, वो यादें हमारे गुज़रे हुए खूबसूरत पलों की हैं, और याद इसलिए नहीं रखना चाहते क्यूंकि हम जानते हैं की वो बातें अब फिर कभी नहीं होंगी..मगर यहाँ सवाल शायद ये है की क्या वो बातें, जिनकी गूँज आज तक हमारे ज़हन में है, जिनके निशाँ आज भी जिंदा हैं, क्या हम उन्हें इतनी आसानी से भुला पायेंगे, और क्या हम उन खूबसूरत पलों को भूल कर खुश रह पाएंगे..शायद इस सवाल का जवाब हमारे अन्दर ही है, बस ज़रूरत है खुद से पूछने की..

                                                     पीले हो चले पन्ने अब,
                                                     स्याही भी कुछ धुंधला सी गयी है,
                                                     देखो यादों के खोशों पर, धूल कितनी जम गयी है,
                                                     गरदूले सफहों पर, परत-दर-परत कितनी पड़ गयी हैं..
                                                     
                                                     आओ, आकर झाड़ दो इक बार इन्हें,
                                                     मिल जाये क्या पता वो हँसी जो गुम गयी है..

4 comments:

  1. कुछ सवालों का जवाब ताउम्र ढूढने पर भी नहीं मिलता... बस कशमकश बाकी रहती है... और शायद यही खूबसूरती होती है उनकी :)

    अच्छा लगा तुम आये यहाँ... अब आते रहना !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank you Ketan Bhaiya :)
      Aur koshish jaari rahegi :)

      Delete
  2. ha bhaiya bade log to ab copyright lene LAGE HAIN...

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...