याद है, कैसे उस रोज़,
तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था,
"काट दो आज की शाम मेरे पहलू में",
कैसे ज़िद करी थी तुमने,
अपनी तारीफ़ सुनने की,
और कैसे मज़ाक बनाया था मैंने तुम्हारा..
आज किताब में तुम्हारा एक फ़ोटो मिला है,
फिर एक शायर जागा है,
फिर से एक नज़्म याद आयी है..
#17th November
Bangalore
खूबसूरत... ऐसे ही जाने कितने नज्में दबी पड़ी रहती हैं... कभी सूखे गुलाबों के साथ तो कभी पुराने खतों के पहलू में ... :)
ReplyDeleteशुक्रिया केतन भैया..बस उन्हीं गुलाबों की खुशबू को फिर से महसूस करने की कोशिश करी है :)
Deletenice one :)
ReplyDeleteThank you so much Nimit Sir :)
DeleteMy personal favorite :)
ReplyDeleteThanks a lot bhai :)
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