Friday 1 May 2015

पेन्टिंग

एक नदी बह रही थी बैकग्राउंड में,
मदहोश अपनी रफ़्तार में..
किनारे पर कुछ दरख़्त खड़े थे,
ग़ुरूर दिल में लिए..
अब्र चल रहे थे फलक पर,
जुनूँ की आगोश में..
शम्स चढ़ रहा था उफ़क़ पर,
सेहर की दस्तक लिए..

और, कैनवस के बीच,
तुम खड़ी थीं,
कुछ उलझे से जज़्बात लिए..

वो तस्वीर,
आज भी टंगी है दीवार पे,
मगर अब,
न पहले सी धूप है,
न पहले सी छाँव है,
आसमाँ बदल गया लगता है,

वक़्त बदल गया लगता है..


#Lakhimpur-Kheri
2nd March

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