अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
वाह... क्या बात :)
शुक्रिया केतन भैया :)
वाह... क्या बात :)
ReplyDeleteशुक्रिया केतन भैया :)
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