अब सोचता हूँ समेट कर रख लूँ ज़र्द पत्ते लम्हों के..हर पतझड़ में बिछते जाते हैं यादों के दरख़्त तले !!
Friday, 2 October 2015
Sunday, 9 August 2015
Saturday, 27 June 2015
मुसाफ़िर
इक ख्वाब पलता है,
के सफर इक ऐसा हो,
ज़मीं से उफ़क़ तक,
रौशन हर नज़ारा हो..
इक जानिब वादी हो,
कुछ दूर किनारा हो..
ज़मी पर उतरता अब्र हो,
फलक पर चमकता सितारा हो..
इस साकित ज़िन्दगी में,
रवानगी का सहारा हो..
मंज़िल दूर चाहे जितनी,
मील का पत्त्थर हमारा हो..
बस इक ख्वाब पलता है,
यूँ सफर हमारा हो..
#Lakhimpur-Kheri
14th Dec'14
Monday, 22 June 2015
Saturday, 23 May 2015
Sunday, 10 May 2015
Friday, 1 May 2015
पेन्टिंग
एक नदी बह रही थी बैकग्राउंड में,
मदहोश अपनी रफ़्तार में..
किनारे पर कुछ दरख़्त खड़े थे,
ग़ुरूर दिल में लिए..
अब्र चल रहे थे फलक पर,
जुनूँ की आगोश में..
शम्स चढ़ रहा था उफ़क़ पर,
सेहर की दस्तक लिए..
और, कैनवस के बीच,
तुम खड़ी थीं,
कुछ उलझे से जज़्बात लिए..
वो तस्वीर,
आज भी टंगी है दीवार पे,
मगर अब,
न पहले सी धूप है,
न पहले सी छाँव है,
आसमाँ बदल गया लगता है,
वक़्त बदल गया लगता है..
किनारे पर कुछ दरख़्त खड़े थे,
ग़ुरूर दिल में लिए..
अब्र चल रहे थे फलक पर,
जुनूँ की आगोश में..
शम्स चढ़ रहा था उफ़क़ पर,
सेहर की दस्तक लिए..
और, कैनवस के बीच,
तुम खड़ी थीं,
कुछ उलझे से जज़्बात लिए..
वो तस्वीर,
आज भी टंगी है दीवार पे,
मगर अब,
न पहले सी धूप है,
न पहले सी छाँव है,
आसमाँ बदल गया लगता है,
वक़्त बदल गया लगता है..
#Lakhimpur-Kheri
2nd March
Tuesday, 17 March 2015
एक कप चाय
"तीन साल, कैसे गुज़र गए, पता ही नहीं चला..."
"हम्म.."
"हम्म.."
"तुम्हारा 'हम्म' आज भी ज़िंदा है !! बिलकुल नहीं बदले तुम ! "
"बिलीव मी, बहुत ट्राई किया मगर.."
"अच्छा, चाय नहीं पिलाओगे ?"
"हम्म..लेमन टी, एक चम्मच शक्कर..लाता हूँ "
"यू स्टिल रिमेम्बर ! और तुम लेमन टी कब से..."
"चाय ही तो है ! "
उसके बाद चाय की चुस्कियों में ही, खामोशी ने सब कह दिया, सब सुन लिया..कप से उठती भांप के जैसे, फिर वो कन्वर्सेशन भी गुम गया..दो आधे पूरे-खाली से प्याले, कुछ बुझते रिश्तों की राख और फ़क़त एक वक़्फ़ा रह गया दरमियाँ..
माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती हैं,
"अच्छा, चाय नहीं पिलाओगे ?"
"हम्म..लेमन टी, एक चम्मच शक्कर..लाता हूँ "
"यू स्टिल रिमेम्बर ! और तुम लेमन टी कब से..."
"चाय ही तो है ! "
उसके बाद चाय की चुस्कियों में ही, खामोशी ने सब कह दिया, सब सुन लिया..कप से उठती भांप के जैसे, फिर वो कन्वर्सेशन भी गुम गया..दो आधे पूरे-खाली से प्याले, कुछ बुझते रिश्तों की राख और फ़क़त एक वक़्फ़ा रह गया दरमियाँ..
माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती हैं,
साहिलों पे लम्हों की रेत बिखर जाती है..
मुस्कुराहटों की सीपियाँ उसमें से चुन लेते हैं,
यादों में पिरोके उनका हार फिर बुन लेते हैं..
बिखर न जाये टूट कर कहीं,
गोशा-ऐ-ज़हन में लिहाज़ा कैद कर देते हैं..
माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती है..
यादों में पिरोके उनका हार फिर बुन लेते हैं..
बिखर न जाये टूट कर कहीं,
गोशा-ऐ-ज़हन में लिहाज़ा कैद कर देते हैं..
माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती है..
#Lakhimpur-Kheri
15-03-2015
Thursday, 5 March 2015
Friday, 30 January 2015
यूँ ही कभी..
अक्सर मैं,
उस कुतबे पर फूल रख आता हूँ,
कभी वक़्त भी गुज़ारता हूँ,
इंतज़ार करता हूँ,
तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ..
फिर, खुद में लौट जाता हूँ,
इक इंतज़ार को समेटे हुए..
जानता हूँ, इक अरसा गुज़र गया है,
कुछ कहे हुए, कुछ सुने हुए..
मगर, कभी आना,
उस मरासिम के मक़बरे की जानिब,
बैठेंगे, बातें करेंगे..
#30th January
Lakhimpur-Kheri
Wednesday, 14 January 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)