Friday, 2 October 2015

तसव्वुर




यही ज़मीं है, यही आसमाँ है,
दोज़ख यहीं है, जन्नत यहाँ है..


यही इश्क़ है, यही गिला है,
खामोशी यहीं है, यहीं सदा है..


यही वक़्त है, यही वेकराँ है,
अधूरा यहीं है, तक़मील यहाँ है..


जो कर सको हासिल इसे,
तो यही मुक़म्मल जहाँ है..


#Lakhimpur-Kheri
30th Sept'15

Sunday, 9 August 2015

मॉनसून




मुझे याद है,
बारिश में खेलते हुए तुम्हें,
उस रोज़ जब हिचकी आई थी,
बेचैन हो उठी थी तुम कैसे,
और मैंने चिढ़ाया था,
"कोई याद कर रहा है तुम्हें"

आज बारिश की बूंदों ने छुआ है,
तो सोचता हूँ तुम्हें बता दूँ,
कि वो एक हिचकी,
जो तुम्हें रोज़ आती है,
वो मेरी गलती है..

#Lakhimpur-Kheri
8th Aug'15


Saturday, 27 June 2015

मुसाफ़िर


इक ख्वाब पलता है,
के सफर इक ऐसा हो,
ज़मीं से उफ़क़ तक,
रौशन हर नज़ारा हो..
इक जानिब वादी हो,
कुछ दूर किनारा हो..
ज़मी पर उतरता अब्र हो,
फलक पर चमकता सितारा हो..
इस साकित ज़िन्दगी में,
रवानगी का सहारा हो..
मंज़िल दूर चाहे जितनी,
मील का पत्त्थर हमारा हो..
बस इक ख्वाब पलता है,
यूँ सफर हमारा हो..

#Lakhimpur-Kheri
14th Dec'14


Monday, 22 June 2015

वो हमसफ़र था


बहुत बचपन इन शाखों पे झूला था,
जवानी भी इसकी ओट में गुज़री थी,
और कितना तज़ुर्बा इस छाँव में बैठा था..

सारे मरासिम काट कर,
चार चक्कों पे सवार हो कर,
जा रहा है इक उम्र ले कर..

कहते हैं शहर तक जाएगी ये सड़क..



#Bangalore
19th June


Saturday, 23 May 2015

जुलाहा


कभी लाल सुर्ख, कभी गाढ़ा नीला,
सफ़ेद कभी, कभी काला,
कितने ही रंगों से वो घिरा रहता है..

कभी आईने के सामने से गुज़रो तो,
क़रीब से दिखता है..

कि कोशिशों के धागे चुन कर वो,
तक़दीर बुना करता है..


#Bangalore
21st May'15

Sunday, 10 May 2015

मुर्शिद


सर्द सुबह में,
जिस अलाव के क़रीब बैठ कर,
मुझे नुस्खे दिए थे, ज़िन्दगी के,
आज फ़क़त धुंआ नज़र आता है उसका..


#Bangalore
2nd May'15


Friday, 1 May 2015

पेन्टिंग

एक नदी बह रही थी बैकग्राउंड में,
मदहोश अपनी रफ़्तार में..
किनारे पर कुछ दरख़्त खड़े थे,
ग़ुरूर दिल में लिए..
अब्र चल रहे थे फलक पर,
जुनूँ की आगोश में..
शम्स चढ़ रहा था उफ़क़ पर,
सेहर की दस्तक लिए..

और, कैनवस के बीच,
तुम खड़ी थीं,
कुछ उलझे से जज़्बात लिए..

वो तस्वीर,
आज भी टंगी है दीवार पे,
मगर अब,
न पहले सी धूप है,
न पहले सी छाँव है,
आसमाँ बदल गया लगता है,

वक़्त बदल गया लगता है..


#Lakhimpur-Kheri
2nd March

Tuesday, 17 March 2015

एक कप चाय

"कितने साल हो गए ?"
"तीन साल, ऑलमोस्ट !"
"तीन साल, कैसे गुज़र गए, पता ही नहीं चला..."
"हम्म.."

"तुम्हारा 'हम्म' आज भी ज़िंदा है !! बिलकुल नहीं बदले तुम ! "
"बिलीव मी, बहुत ट्राई किया मगर.."
"अच्छा, चाय नहीं पिलाओगे ?"
"हम्म..लेमन टी, एक चम्मच शक्कर..लाता हूँ "
"यू स्टिल रिमेम्बर ! और तुम लेमन टी कब से..."
"चाय ही तो है ! "


उसके बाद चाय की चुस्कियों में ही, खामोशी ने सब कह दिया, सब सुन लिया..कप से उठती भांप के जैसे, फिर वो कन्वर्सेशन भी गुम गया..दो आधे पूरे-खाली से प्याले, कुछ बुझते रिश्तों की राख और फ़क़त एक वक़्फ़ा रह गया दरमियाँ..

माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती हैं,
साहिलों पे लम्हों की रेत बिखर जाती है..
मुस्कुराहटों की सीपियाँ उसमें से चुन लेते हैं,
यादों में पिरोके उनका हार फिर बुन लेते हैं..
बिखर न जाये टूट कर कहीं,
गोशा-ऐ-ज़हन में लिहाज़ा कैद कर देते हैं..

माज़ी के समंदर में लहरें जब टकराती है..



#Lakhimpur-Kheri
15-03-2015

Thursday, 5 March 2015

दंगा



सारा दिन शम्शीर टकराईं थीं,
गली-गली मकाँ जलाये थे..
आग कुछ ने लगायी थी,
और लहू सब बहाये थे..

उस रोज़,
क़त्ल इन्सां कहाँ हुए थे,
किसी ने टोपियां उछाली थीं,
किसी ने तिलक मिटाये थे..


#6th Feb 2015
Lakhimpur-Kheri


Friday, 30 January 2015

यूँ ही कभी..


अक्सर मैं,
उस कुतबे पर फूल रख आता हूँ,
कभी वक़्त भी गुज़ारता हूँ,
इंतज़ार करता हूँ,
तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ..
फिर, खुद में लौट जाता हूँ,
इक इंतज़ार को समेटे हुए..

जानता हूँ, इक अरसा गुज़र गया है,
कुछ कहे हुए, कुछ सुने हुए..

मगर, कभी आना,
उस मरासिम के मक़बरे की जानिब,
बैठेंगे, बातें करेंगे..


#30th January
Lakhimpur-Kheri

Wednesday, 14 January 2015

अंज़ाम



ज़हन में भटकी बहुत थी वो,
बार गिरी कई थी,
लड़ी भी बहुत थी वो,
फिर छटपटाई भी देर तक थी..

अल्फ़ाज़-दर-अल्फ़ाज़ रदीफ़ खोते गए,
आहिस्ता-आहिस्ता काफ़िये तहलील होते गए,
ख़ामोशी-ऐ-तवील के फिर हाशिये खिंच गये..

और एक नज़्म यूँ घुट कर बेसुध हो गयी..


#13th January
Lakhimpur-Keri


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